
सार…….
⭕ न्यायायिक कार्यों में विजय दिलाती है मां सिद्धिदात्री-ज्योतिष गुरू।
विस्तार………
नवरात्रि का नौवां दिन देवी सिद्धिदात्री को समर्पित है। यह माँ आदिशक्ति का नौवां और अंतिम रूप है। आठ सिद्धियों को उत्पन्न करने वाली इन देवी की पूजा से पारिवारिक सुखों में वृद्धि होती है और माता अपने भक्तों पर कोई विपदा नहीं आने देती हैं। माँ का ज्ञानी रूप माँ दुर्गा का नौंवा अर्थात सिद्धिदात्री स्वरूप है। इनके नाम में ‘सिद्धिदात्री’ में निहित आठ सिद्धियाँ हैं-अनिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, लिषित्वा और वशित्व।
आपको बता दें कि, ज्योतिष गुरु पंडित अतुल शास्त्री बताते हैं कि, ऐसी मान्यता है- माँ की आराधना करनेवालों को माँ यह सभी सिद्धियाँ देती हैं। माना जाता है कि “देवीपुराण” में भगवान शिव को यह सभी सिद्धियाँ महाशक्ति की पूजा करने से मिली हैं। उनकी कृतज्ञता से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का बन गया था और वह “अर्धनारीश्वर” के नाम से प्रसिद्ध हो गए। यही वजह है कि, देवी दुर्गा के इस अंतिम स्वरुप को नव दुर्गाओं में सबसे श्रेष्ठ और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है। यह श्वेत वस्त्रों में महाज्ञान और मधुर स्वर से भक्तों को सम्मोहित करती है। यह देवी भगवान विष्णु की अर्धांगिनी हैं और नवरात्रों की अधिष्ठात्री भी हैं। माँ सिद्धिदात्री को ही जगत को संचालित करने वाली देवी कहा गया है। माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। यह कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है।
नवदुर्गा के स्वरूप में साक्षात पार्वती और भगवती विघ्नविनाशक गणपति को भी सम्मानित किया जाता है। मान्यता है कि, नवें दिन जो भक्त सिद्धिदात्री की पूजा उपासना के साथ नवाहन का प्रसाद, नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करके नवरात्र का समापन करते हैं, उनको इस संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। अत: अंतिम दिन भक्तों को पूजा के समय अपना सारा ध्यान निर्वाण चक्र जो कि हमारे कपाल के मध्य स्थित होता है, वहां लगाना चाहिए। ऐसा करने पर देवी की कृपा से इस चक्र से संबंधित शक्तियां स्वत: ही भक्त को प्राप्त हो जाती है।
नवमी तिथि पर माँ को विभिन्न प्रकार के अनाजों का भोग लगाएं जैसे- हलवा, चना-पूरी, खीर तथा पुए और फिर उसे गरीबों को दान करें। इससे जीवन में हर सुख-शांति मिलती है। माँ सिद्धीदात्री के पूजन में भी आप हल्के नीले रंग का उपयोग कर सकते हैं। चंद्रमा की पूजा के लिए यह सर्वोत्तम दिन है।
मां सिद्धिदात्री का ज्योतिष से संबंध: यह मां का प्रचंड रूप है, जिसमें शत्रु विनाश करने की अदम्य ऊर्जा समाहित होती है और इस स्वरूप को तो स्वयं त्रिमूर्ति यानी की ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी पूजते हैं। इसका अभिप्राय यह हुआ कि, यदि यह माता अपने पात्र से प्रसन्न हो जाती हैं तो शत्रु उनके इर्द-गिर्द नहीं टिकते हैं। साथ ही उसको त्रिमूर्तियों की ऊर्जा भी प्राप्त होती है। जातक की कुंडली का छठा भाव और ग्यारहवां भाव इनकी पूजा से सशक्त होता है। लेकिन साथ-साथ तृतीय भाव में भी जबरदस्त ऊर्जा आती है। शत्रु पक्ष परेशान कर रहें हो, कोर्ट-केस हो तो माता के इस स्वरूप किए पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है।
इस उपाय से होगा विशेष लाभ: यद्यपि मां का यह स्वरूप एक दिन की अर्चना से प्रसन्न मुश्किल से ही होता है। लेकिन फिर भी इस दिन यदि इन्हें वर्ष भर पूजने का संकल्प कर ले लिया तो शत्रु पक्ष से व्यक्ति खुद को निश्चिन्त समझें।
सालभर में चार बार आने वाली मां के नवरात्रि में से चैत्र माह के नवरात्रि बेहद खास होते है। इन दिनों मां के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के आखिरी दिन राम नवमी का पर्व बनाया जाता है। इस दिन छोटी-छोटी कन्याओं को घर पर बैठाकर कन्या जमाई जाती है। तो चलिए बताते है आपको रामनवनमी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारें में।
राम नवमी पूजा विधि: नवमी की तिथि वाले दिन प्रात:काल स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थान को शुद्ध करने के बाद पूजा आरंभ करें। हाथ में अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें। भगवान राम का पूजन आरंभ करें। पूजन में गंगाजल, पुष्प, 5 प्रकार के फल, मिष्ठान आदि का प्रयोग करें। रोली, चंदन, धूप और गंध आदि से षोडशोपचार पूजन करें। तुलसी का पत्ता और कमल का फूल अर्पित करें। पूजन करने के बाद रामचरितमानस, रामायण और रामरक्षास्तोत्र का पाठ करना अति शुभ माना गया है। पूजा समापन से पूर्व भगवान राम की आरती करें।
राम नवमी का महत्व: राम नवमी का पावन पर्व रामायण काल से मनाया जा रहा है। इस दिन पूरे देश में प्रभु राम का जन्म दिवस मनाया जाता है। मान्यता है कि, राम नवमी के दिन भगवान राम और मां भगवती की विधिवत पूजा अर्चना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और कष्टों का नाश होता है। बता दें कि, राम नवमी के साथ इस दिन नवरात्रि का भी समापन होता है। ऐसे में लोग कन्या पूजन कर मां भगवती की अराधना करते हैं। इस दिन भगवान राम के जन्म स्थान अयोध्या में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस दिन भगवान श्रीराम की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है। माना जाता हैं कि, इस दिन जो भी भक्त पूरे भक्तिभाव और विधि विधान से श्रीराम की पूजा करते हैं उनके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है।
पूजन विधि: सर्वप्रथम शुद्ध होकर मां दुर्गा की पूजा अर्चना करें। मां के वंदना मंत्र का उच्चारण करें। मां को आज के दिन हलवा पूरी का भोग लगायें। आज के दिन हवन अवश्य करें। माता के मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ या फिर ग्रहों के बीज मंत्र या फिर किसी कामना विशेष को लेकर संबंधित देवी-देवता के मंत्र का जाप करें। चाहें तो विजय की कामना करते हुए श्रीरामचरितमानस की किसी चौपाई से भी हवन कर सकते हैं।
माँ दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की उपासना करने के लिए शास्त्रों में निम्न मंत्र की साधना का वर्णन है-
मंत्र:- या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता। नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नम: ।।
ज्योतिष सेवा केन्द्र
ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री
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