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हर लड़के का सपना होता हैं कि, उसे एक दिन राजकुमारी मिले और हर लड़की चाहती है कि, उसे अपने सपनों का राजकुमार मिले। हिंदू धर्म में विवाह से जुड़े कई रीति-रिवाजों को आज की युवा पीढ़ी नजरअंदाज करती है। लेकिन धर्म में इन रिवाजों का बड़ा महत्व बताया गया है। अग्नि को साक्षी मानकर अपनों के बीच वर-वधू सात फेरों के दौरान एक-दूसरे से जिंदगी भर साथ निभाने के साथ कई वचन (शादी के सात वचन) लेते हैं और एक नए रिश्ते की शुरुआत करते हैं। जिंदगी में एक समय ऐसा आता है, जब ये सपना सबका सच हो जाता है। अपने सभी सगे-संबंधियों और खास दोस्तों के सामने वर-वधू सात फेरे लेते हैं, जिनका हिंदू शादी में एक महत्वपूर्ण स्थान होता है। हर एक फेरे के साथ वर-वधू एक-दूसरे को एक नया वचन देते हैं।
क्या है विवाह ?: आपको बता दे कि, हिंदू धार्मिक ग्रंथों में सोलह संस्कार की बात की गई है, जिसमें से एक संस्कार है विवाह का है। विवाह का अर्थ होता है उत्तरदायित्व का वहन करना। अन्य धर्मों में विवाह एक करार होता है, जबकि हिंदू धर्म में यह जन्म-जन्मांतर का संबंध होता है, जिसको किसी भी परिस्थिति में तोड़ा नहीं जा सकता है। विवाह के समय वर-वधू अग्नि के सात फेरे लेकर और ध्रुव तारे को साक्षी मानकर तन, मन और आत्मा से एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में साथ फेरे लेने की रस्म को काफी महत्व दिया गया।
सनातन धर्म की परंपरा के मुताबिक, विवाह संस्कार के दौरान वर-वधू के फेरे होते हैं और फेरों के दौरान भावी पति-पत्नी एक-दूसरे को सात वचन देते हैं। सात फेरों को सप्तपदी भी कहा गया है। इन सात फेरों को पति-पत्नी को जिंदगी भर निभाना होता है। मान्यताओं के अनुसार, सात फेरे किसी भी हिंदू विवाह की स्थिरता का मुख्य स्तंभ होते हैं।
शादी में सात ही वचन क्यों दिया जाते हैं: अब यहाँ आप सोच रहे होंगे कि, आखिर सात फेरे ही क्यों लिए जाते हैं ? तो आइये हम पहले इन सात फेरे लेने की वजह जान लेते हैं।
🪷 सनातन धर्म में मौजूद मान्यताओं की माने तो मानव जीवन के लिए 7 की संख्या बहुत विशिष्ट मानी गई है। अगर आप भारतीय संस्कृति पर ध्यान देंगे तो आपको पता चलेगा कि, भारतीय संस्कृति में संगीत के 7 सुर, इंद्रधनुष के 7 रंग, 7 ग्रह, 7 तल, 7 समुद्र, 7 ऋषि, सप्त लोक, 7 चक्र, सूर्य के 7 घोड़े, सप्त रश्मि, सप्त धातु, सप्त पुरी, 7 तारे, सप्त द्वीप, 7 दिन, मंदिर या मूर्ति की 7 परिक्रमा, आदि का उल्लेख किया गया है। यही वजह है कि, हिंदू विवाह में फेरों की संख्या भी 7 है, और शादी में दिए जाने वाले वचनों की संख्या भी सात है।
क्या है शादी के 7 वचन: सात फेरे क्यों लेते है इसकी वजह तो पता लग गयी, अब आइये हम इन सात फेरों के दौरान लिए जाने वाले सात वचनों और उनके महत्व को जानते हैं।
पहला वचन:
🪷 “तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:।
🪷 वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी॥“
🪷 पहले वचन में कन्या वर से यह मांग करती है कि, अगर वर कभी तीर्थयात्रा करने जाए तो उसे भी अपने साथ लेकर जाए। अगर वर कोई व्रत-उपवास या अन्य धार्मिक कार्य करे तो आज की भांति ही उसे बायीं ओर बिठाए। फिर कन्या वर से पूछती है कि, अगर उसे यह स्वीकार है तो वो उनके वामांग यानी बायीं ओर में आना स्वीकार करती है।
महत्व: किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्यों की पूर्ति हेतु पति के साथ पत्नी का होना अनिवार्य माना गया है। पत्नी द्वारा इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पत्नी की सहभागिता व महत्व को स्पष्ट किया गया है।
दूसरा वचन:
🪷 “पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:।
🪷 वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम॥”
🪷 दूसरे वचन में वधू वर से वचन लेती है कि, जिस तरह वर अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, वैसे ही वो उनके भी माता-पिता का सम्मान करेंगे और परिवार की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान (धर्म को मानते हुए) करते हुए ईश्वर के भक्त बने रहेंगे। अगर आपको ये स्वीकार है तो मैं आपके वामांग (बाएं ओर) में आना स्वीकार करती हूँ।
महत्व: यहां इस वचन के द्वारा कन्या की दूरदृष्टि का आभास होता है। इस वचन को ध्यान में रखते हुए वर को अपने ससुराल पक्ष के साथ सदव्यवहार के लिए अवश्य विचार करना चाहिए।
तीसरा वचन:
🪷 जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात।
🪷 वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृतीयं॥”
🪷 तीसरे वचन में वधु कहती है कि, वर उसे वचन दे कि, जीवन की तीनों अवस्थाओं (युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था) में वर उसका पालन करता रहे। अगर वह इसे स्वीकार करता है तो कन्या उसके वामांग (बाएं ओर) में आना स्वीकार करती है।
महत्व: यहाँ किसी भी मनुष्य की सभी अवस्थाओं का समान रूप से दिखाने का प्रयास किया गया है, कन्या के कहने का अर्थ है कि, आपको जीवन की सभी अवस्थाओं को समान रूप से देखना चाहिए, किसी प्रकार का भेदभाव नहीं रखना चाहिए।
चौथा वचन:
🪷 “कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:।
🪷 वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं॥ “
🪷 वधू चौथे वचन में ये कहती है कि, अब आप विवाह के बंधन में बंधने जा रहे हैं तो ऐसे में परिवार की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति का पूरा दायित्व आपके कंधों पर होगा। अगर आप इस भार को संभालने में सक्षम हैं और इसे करने की प्रतिज्ञा आप लेते हैं तो मैं आपके वामांग (बाएं ओर) में आना स्वीकार करती हूँ।
महत्व: इस वचन में कन्या वर को भविष्य में उसके उत्तरदायित्वों के प्रति ध्यान आकृष्ट करती है। इस वचन द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है कि, पुत्र का विवाह तभी करना चाहिए, जब वो अपने पैरों पर खड़ा हो अर्थात पर्याप्त मात्रा में धनार्जन करने लगे।
पांचवा वचन:
🪷 “स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा।
🪷 वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या॥ “
🪷 इस वचन में वधु जो कहती है वो आज के समय के हिसाब से बहुत जरूरी है। अपने होने वाले वर से वधु परिवार को सुखी बनाए रखने के लिए पांचवा वचन लेती है, जिसमें वो कहती है कि, अपने घर के कार्यों में, विवाह आदि, लेन-देन और किसी अन्य चीज पर खर्चा करते समय अगर आप मेरी भी राय लिया करेंगे तो मैं आपके वामांग (बाएं ओर) में आना स्वीकार करती हूँ।
महत्व: यह वचन पूरी तरह से पत्नी के अधिकारों को रेखांकित करता है। अब यदि किसी भी कार्य को करने से पूर्व पत्नी से मंत्रणा कर ली जाए तो इससे पत्नी का सम्मान तो बढ़ता ही है, साथ-साथ अपने अधिकारों के प्रति संतुष्टि का आभास भी होता है।
छठा वचन:
🪷 “न मेपमानमं सविधे सखीना द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्वेत
🪷 वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम!। “
🪷 कन्या छठवें वचन में कहती है कि, अगर मैं किसी समय अपनी सहेलियों या अन्य महिलाओं के साथ बैठी रहूं तो आप किसी के सामने किसी भी वजह को लेकर मेरा अपमान नहीं करेंगे। इसके अलावा आप अपने आपको जुआ या किसी अन्य प्रकार की बुराइयों से दूर रखेंगे। अगर आप यह मानते हैं तो ही मैं आपके वामांग (बाएं ओर) में आना स्वीकार करती हूँ।
महत्व: यहां पर सम्मान को दर्शाया गया है कि, जिस तरह आप अपने परिवारीजनों का आदर सम्मान करते है, ठीक उसी तरह आप मेरा और मेरे प्रियजनों का आदर सत्कार करेंगे और किसी भी तरह के गलत बुरे कार्यो से परहेज रखेंगे।
सातवां वचन
🪷 “परस्त्रियं मातूसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कूर्या
🪷 वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तमत्र कन्या!। “
🪷 कन्या आखिरी और सातवें वचन के रूप में वर से यह मांग करती है कि, वह पराई महिलाओं को अपनी मां समान समझेंगे और पति-पत्नी के आपसी प्रेम के बीच किसी को भागीदार नहीं बनाएंगे। अगर आप मुझे यह वचन देते हैं तो मैं आपके वामांग (बाईं ओर) में आना स्वीकार करती हूँ।
महत्व: यहां पर कन्या पति पत्नी के पवित्र रिश्ते पर प्रकाश डालने की तरफ इशारा करती है, जिस तरह आपका और मेरा रिश्ता है ठीक उसी तरह का रिश्ता किसी अन्य के साथ न बनाए। अगर आप ऐसा करते है तो अपने रिश्ते का अपमान होगा, इसलिए ऐसा करने से बचें।
🪷 धर्म में वर-वधुओं को लेकर अलग-अलग मान्यताएं होती हैं। मगर इन सबके पीछे का महत्व एक ही होता है और वो है कि, दोनों ही एक-दूसरे के प्रति समर्पित रहें और एक-दूसरे का सम्मान करें।