
सार……..
⭕ माता कात्यायनी की पूजा के लिए गोधूलि बेला में पीले या लाल वस्त्र धारण कर पूजा करें व पीले रंग के पुष्प और पीला नैवेद्य अर्पित करें। इन्हें शहद अर्पित करना विशेष शुभ होता है। पूरे नवरात्र पर्व में ब्रम्हचर्य धर्म का पालन करना चाहिए।
विस्तार……..
सलेमपुर/देवरिया: नवरात्र पर्व के छठवें दिन मां कात्यायनी की पूजा अर्चना की जाती है। महर्षि कात्यायन की तीव्र इच्छा थी कि, मां भगवती उनको पुत्री के रूप में प्राप्त हो, इसके लिए उन्होंने देवी पराम्बा की कठोर तपस्या की। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी पराम्बा ने उन्हें वरदान दिया और उनकी पुत्री के रूप में उनके यहां प्रकट हुईं।
आपको बता दें कि, ज्योतिष गुरु आचार्य अजय शुक्ल ने कहा कि, द्वापर युग में गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए माता कात्यायनी की पूजा की थी। मां कात्यायनी की पूजा करने से भक्तों को सुगमता से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इनकी आराधना से शीघ्र विवाह के योग, मनचाहा जीवनसाथी मिलने का वरदान प्राप्त होता है।
ज्योतिष गुरु आचार्य अजय शुक्ल ने बताया कि, कात्यायनी शब्द किसी व्यक्ति पर आने वाली गम्भीरता, अहंकार और नकारात्मक शक्तियों को दूर करने की शक्ति को भी निर्दिष्ट करता है।
कात्यायनी का तात्पर्य अहंकार के विनाश करने से भी है। जिसके परिणाम स्वरूप कमजोरों को महान संघर्ष और कष्ट सहना पड़ता है।मां की तीन आंख और आठ भुजा है, जो बुराई के विरुद्ध लड़ाई का एक अंतनिर्हित हिस्सा है। मां कात्यायनी भक्तों पर बहुत शीध्र कृपा बरसाती हैं। इनकी पूजा के लिए गोधूलि बेला में पीले या लाल वस्त्र धारण कर पूजा करें, व पीले रंग के पुष्प और पीला नैवेद्य अर्पित करें। इन्हें शहद अर्पित करना विशेष शुभ होता है। पूरे नवरात्र पर्व में ब्रम्हचर्य धर्म का पालन करना चाहिए।