
रजनीकांत अवस्थी
रायबरेली: महराजगंज क्षेत्र भर में संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना के साथ मांताओं ने आज हलछठ का व्रत रखा। इसे हरछठ या खमरछठ के नाम से भी जाना जाता है। क्षेत्र के गांवों महिलाओं ने सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लिया। इसके बाद कई माताओं ने घर की दीवाल, तो कुछ ने बाहर दीवार पर भैंस के गोबर से छठ माता का चित्र बनाया। उन्होंने भगवान गणेश और मां पार्वती की पूजा-अर्चना की।
आपको बता दें कि, पौराणिक मान्यता है कि, इस दिन श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। मान्यता यह भी है कि, इस व्रत को विधि-विधान से करने पर संतान से जुड़ी समस्याएं दूर हो जाती हैं। महराजगंज कस्बे में अनुपम पांडेय, रंजना तिवारी, नीलम पांडेय, रश्मी पांडेय, अनु पांडेय समेत सिकंदरपुर, मुरैनी, ताजुद्दीनपुर, मोन, ज्योना, चंद्रापुर, मऊ आदि गांव की महिलाओं कांती अवस्थी, सरिता अवस्थी, राम कुमारी देवी, सोनी अवस्थी, कुसमा अवस्थी, विमलेश अवस्थी, सोनी अवस्थी, पारुल अवस्थी, डाली अवस्थी ने घर में ही गोबर से प्रतीक के रूप में तालाब बनाया और एक साथ हलषष्ठी व्रत की कथा सुनी। माताओं ने बर्तन में बनाए तालाब में कांसे के फूल लगाए।
भाद्र कृष्ण पक्ष की षष्ठी पर हलषष्ठी माता की पूजा की जाती है। रायबरेली समेत महराजगंज क्षेत्र में इस पूजा को लेकर कई मान्यता प्रचलित हैं। इस व्रत में दूध, घी, सूखे मेवे, लाल चावल (पसाढ़ी) का सेवन किया जाता है, लेकिन इस दिन गाय के दूध और दही का सेवन नहीं करना चाहिए। इसलिए अधिकतर महिलाएं भैंस के दूध का प्रयोग करती हैं।
बिना हल चली जमीन पर उपजे पसाढ़ी चावल का उपयोग: हलषष्ठी की पूजा में बिना हल चली जमीन पर उपजे पसाढ़ी चावल, महुआ, दही का उपयोग किया जाता है। पूजा के बाद दीर्घायु और सुखी भविष्य के लिए माताओं ने संतान के माथे पर तिलक लगाकर उनकी पीठ पर पोता लगाया और उन्हें दूध-दही मिश्रित पसाढ़ी चावल का प्रसाद खिलाया। शाम को व्रती महिलाएं पसहर चावल और मुनगा भाजी खाकर व्रत का पारण करेंगी।
आज बलराम जयंती: बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है, इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है। उन्हीं के नाम पर इस पावन पर्व का नाम हल षष्ठी पड़ा है। नवविवाहित स्त्रियां भी संतान की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं। इसके साथ ही बलराम जयंती होने के कारण इस दिन खेती में उपयोग होने वाले उपकरणों की पूजा भी की जाती है।