
सार…….
फसलों को ज्यादा पानी भी नुकसान पहुंचा सकती है। जमीन पर जमा पानी रेखा से अधिक होने से पीलापन दिख सकती है।
विस्तार………
पीलापन किसानों के लिए एक चिंता का विषय है, जो कई कारणों से पैदा हो सकता है। इस समस्या के समाधान के लिए, आपको समझना जरूरी है कि, यह क्या कारण हो सकते हैं और उन्हें कैसे ठीक किया जा सकता है। इस लेख में, हम पीलापन के कारणों के बारे में बात करेंगे और उनका उपचार करने के विभिन्न तरीकों पर विचार करेंगे।
आपको बता दें कि, पीलापन फसलों में कई अलग-अलग कारणों से हो सकता है। ये निम्नलिखित हैं: (पानी की कमी) पीलापन का मुख्य कारण पानी की कमी हो सकती है। यदि समय पर सही मात्रा में पानी उपलब्ध नहीं होता है, तो फसल उचित तरीके से विकसित नहीं हो सकती है और पीली दिखने लगती है।
पानी की अधिकता: फसलों को ज्यादा पानी भी नुकसान पहुंचा सकती है। जमीन पर जमा पानी रेखा से अधिक होने से पीलापन दिख सकती है।
अधिक तापमान: फसलों के लिए अधिक तापमान भी कई बार एक बड़ी समस्या होता है। उच्च तापमान में फसलों की प्रकृति पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जो पीलापन के कारण बन सकता है।
उर्वरकों की असंतुलित मात्रा: सही मात्रा में उर्वरकों का उपयोग फसलों के लिए आवश्यक है। यदि उर्वरकों की मात्रा अधिक या कम होती है, तो फसल पीली दिख सकती है।
कीट/रोगों का आक्रमण: कीट और रोग भी फसलों के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं, जिससे फसल पीली दिखने लगती है।
पीलापन के उपचार: (पीलापन को ठीक करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाएं)
धान में पीलापन का समाधान: जिन किसानों के धान पीले पड़ रहे हों वे यूरिया व जिंक का मिक्सचर करके धान में छिड़काव करें। इससे पीलापन दूर होगा। इसके अलावा जिस धान के खेत में पौधे का बढ़ाव नहीं हो रहा है व फसल पीली पड़ रही है, उस खेत को सुखाने के बाद उसमें कारवां फ्यूरान दवा का छिड़काव करें या एक बीघे में तीन किलो नमक राख में मिलाकर छिड़काव करें। बताया कि, मौजूदा समय में अरहर की पत्तियों में कटुआ रोग हो गया जिससे पत्तों में छेद हो जा रहा है। कहा कि किसान उसके लिए पेस्साइड दवाओं का प्रयोग करें।
धान में पीलेपन का कारण: धान में रोपाई के केवल 15 दिन में ही जिंक (जस्ते) की कमी के कारण फसल में पीलेपन की समस्या देखने को मिलती है। पौधों में जिंक की कमी के कारण पत्तियां आधार की ओर से पीली पड़ने लगती है। ये हल्के पीले रंग के धब्बे होते हैं, जो बाद में गहरे भूरे रंग में बदल जाते हैं। पत्तियों के साथ जिंक की कमी के लक्षण जड़ों में भी देखे जाते हैं। इसके प्रभाव से जड़े भूरी रंग की हो जाती हैं।
जिंक की कमी से होने वाले नुकसान: जिंक पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी कमी के कारण पौधे अपना भोजन नहीं बना पाते हैं और उनका विकास रुक जाता है। जिंक की अधिक कमी के कारण नई पत्तियां उजली निकलने लगती हैं और पुरानी पत्तियों की शिराओं पर सफेद धब्बे बनने लगते हैं। लम्बें समय तक जिंक की कमी के कारण पौधों का विकास रुक जाता है और पौधे बौने ही रह जाते हैं। धान की फसल में जिंक की कमी से खैरा रोग होने का खतरा भी बढ़ जाता है। बालियां देर से निकलती हैं एवं फसल पकने में भी समय लगता है।
नियंत्रण के उपाय: धान की फसल में जिंक की कमी को पूरा करने के लिए प्रति एकड़ 2 किलोग्राम यूरिया के साथ 1 किलोग्राम जिंक सल्फेट की मात्रा का छिड़काव 250 लीटर पानी में घोल बनाकर करें। 3 से 4 किलोग्राम देहात बायो जिंक की मात्रा का छिड़काव प्रति एकड़ खेत के अनुसार करें तथा अधिक प्रभाव होने पर 15 दिनों के बाद दोबारा छिड़काव करें।
सुझाव: कृषि विशेषज्ञ से सलाह लेकर ही रोग से ग्रसित फसलों का उपचार करें।