
“आत्मानुभूति” बहुत बुरा हूॅ माना मैने फिर भी अन्तस नहीं मानता
●बहुत बुरा हूॅ माना मैने फिर भी अन्तस नही मानता,
●नेकी करूं सभी का सोचूं छल प्रपंच को नहीं जानता,
●फिर भी ऐसा क्यों हो जाता अगला देता मुझे बुराई?
●निशि दिन सोचा कहाँ गलत हूं बात समझ में मुझे न आई।।
●अपने ही तो यहां सभी है कोई गलत नहीं हो सकता,
●नेह यहां पर गठबंधन है बहुत दिनो से है ये पकता,
●बर्तन लड़ें एक हो जाए बैलो की सीघे टकराये,
●क्या मै मानूं जुदा -जुदा हैं हमको बिल्कुल मत भटकाए।।
●आगे से मैं शब्द तोलकर शहद लगाकर सही कहूंगा,
●सम्मानित तो सबको करता आगे भी अब किया करूंगा,
●मानव हूं सांसारिक भी हूं चूक कहीं मुझसे हो जाए,
●तो क्या मतलब गलत हमीं है और सभी हैं गंग नहाए।।
●प्रिय यदि कहता मूझे गलत हूं विश्लेषण आवश्यक होता,
●सोते जन से यदि तुम पूछो क्या वह कहता मै हूं सोता,?
●ठकुरसोहाती बातें करना बहुत देर तक मुझे न आती,
●है यदि गल्ती नत मस्तक हूं सबका हूं मैं क्षमा प्रार्थी।।
●बहुत बुरा हूॅ माना मैने फिर भी अन्तस नहीं मानता।।
रचयिता ~ कमल बाजपेयी